बुधवार, 6 मार्च 2024

श्रीकृष्ण जन्म स्थान के आसपास दर्लभ प्रजाति के जीवों को दिखा कर लोगों से पैसा लेने धन्धा शुरू

अब श्रीकृष्ण जन्म स्थान के आसपास दर्लभ प्रजाति के जीवों को दिखा कर लोगों से पैसा लेने और यात्री परदेशियों से अपने स्वार्थ के लिए ऐसे जीव जन्तुओं के जरिये रूपया कमाने का
हो गया है। कई लोगों को दुर्लभ सांपों के साथ तो कई को मोर पंखों के साथ देखा जा सकता है। जिन्हें दिखाकर पैसे मांगते हैं यदि यात्री परदेशी पैसा न दें तो इस प्रकार के लोगों द्वारा दर्शनाथियों के साथ र्दुव्यवहार करते, झगड़ा करते हैं, मारपीट तक करते हैं, इन्हें आयदिन लड़ते, झगडते देखा जा सकता है। श्रीकृष्ण जन्मस्थान के निकट पोतराकुण्ड के समीप आज एक व्यक्ति जो यहां आये यात्री परदेशियों को दुर्लभ प्रजाति का उल्लू दिखाकर पैसे मांग रहा था। यात्रियों द्वारा न दिये जाने पर लडाई झगडा करने लगा। जिससे अक्ष्छा खासा हंगामा खड़ा हो गया। यात्री उस नशे में धुत्त व्यक्ति की पिटाई कर रहे थे। मैं भी स्टेट बैंक जगन्नाथपुरी ब्रान्च से अपना काम निपटा कर उसी रास्ते से निकल रहा था। जब यह माजरा देखा तो मैं भी वहां रूक गया। देखा कि कुछ लोग मिलकर एक शराब पीये हुए व्यक्ति को मारपीट रहे हैं और वह सबको गालियां दिये जा रहा था। यह सभी बाहर से आये दर्शनार्थी थे। मेरे अनुरोध करने पर वह लोग उसे छोड़ कर दर्शन करने निकल गये जब मेंने उस शराब पीये हुए व्यक्ति को देखा तो बुरी तरह से नशे में धुत्त था और गन्दी-गन्दी गालियां दे रहा था और उसके हाथ में एक दुर्लभ प्रजाति का उल्लू भी था जिसे शायद उसने उड़ने लायक भी नहीं छोड़ा। काफी मना करने पर न तो वह गाली देना बंद कर रहा था और न ही वह उस उल्लू को छोड रहा था। तब मैंने पोतरा कुण्ड साइड में बने गेट पर तैनात एक दरोगा जी से सारी घटना बताई उन्होंने तत्काल दो-तीन पुलिस कर्मियों को उस दिशा में भेज दिया। तब मैं वहां से चला आया फिर मैंने जिला वन अधिकारी श्री रजनी कान्त मित्तल जी को फोन पर सारी घटना बता कर उक्त उल्लू को रेस्क्यू कराने का अनुरोध किया। उन्होंने तत्काल ही वन विभाग की टीम को घटना स्थल पर भेजा, जहां से यह दुर्लभ प्रजाति के उल्लू को वन विभाग के कर्मचारियों ने अपने कब्जे में ले लिया। धन्यवाद पुलिस कर्मियों का और वन विभाग के अधिकारी व कर्मचारियों का।

शुक्रवार, 1 मार्च 2024

ब्रज लोक कला एवं शिल्प संग्रहालय का लोकार्पण

ब्रज के तीर्थत्व की बापसी का आन्दोलन है संग्रहालय-शैलजा कान्त मिश्र संग्रहालय मानव जीवन से जुडी गतिबिधियों का दर्पण होना चाहिए-श्रीवत्स गोस्वामी मथुरा। वृन्दावन, ब्रज की हर एक वस्तु और हर एक वृक्ष को संग्रहित करने की आवश्यकता है, आप सभी ब्रजवासियों के कारण यह एक अच्छी शुरूआत है, भगवान श्री कृष्ण ने हमें चैतन्य रूप में इसे व्यवथित करने के लिए अवसर प्रदान किया है, हमें अपने आपको चैतन्य रूप में ही समाहित करके इस पुनीत कार्य को करना चाहिए। ब्रज लोक कला एवं शिल्प संग्रहालय का लोकार्पण समरोह में अध्यक्षता करते हुए उ0 प्र0 ब्रज तीर्थ विकास परिषद् के उपाध्यक्ष शैलजा कान्त मिश्र ने कहा कि ब्रज के समग्र विकास के लिए ब्रज तीर्थ विकास परिषद् की स्थापना का संकल्प ब्रह्मर्षि देव रहा बाबा के आदेष पर हुआ उनका आदेश था कि ब्रज की रक्षा के लिए कार्य करना होगा। तभी भारत सम्पूर्ण विश्व में सिरमोर बनेगा। मैं हमेशा उनके आदेश को अपने स्मरण में रख कर ब्रज की सेवा में लगा हुआ हूँ।
उन्होंने कहा कि लोक कला एवं शिल्प संग्रहालय पूर्व में भी बना बज्रनाभ जी ने समूचे ब्रज क्षेत्र को ही संग्रहालय बना दिया था जो किन्हीं कारणों से लोप हो गया था। ब्रज की लोककला में ब्रज के लोक गीतों में चेतना समाई हुई है। श्री कृष्ण कालीन चेतना उनका रूप उनके शब्द समाये हुए हैं। मोदी जी के अनुग्रह से योगी जी के अनुग्रह से कुछ विकास धरातल पर हैं कुछ योजनाएं आने वाली हैं, उन्होंने कहा कि धन खर्च करके ब्रज को सिंगापुर तो बनाया जा सकता है किन्तु तीर्थ नहीं बनाया जा सकता है। ब्रज लोक कला एवं शिल्प संग्रहालय में जो संग्रह किया जा रहा है उससे भी आगे श्री कृष्ण के प्रति भाव को अपने हृदय में संग्रहित करने की आवश्यकता है तब ही तीर्थ की स्थापना सम्भव हो सकेगी। सभी ब्रजवासी व उनके माध्यम से यहां आने वाले लोगों के मन में भगवान श्रीकृष्ण की सत्य निष्ठा, उनका सद्भाव को अपने अन्दर समाहित करना होगा। आप सभी ब्रजवासियों के कारण यह एक अच्छी शुरूआत है। आप सभी को मानना होगा कि भगवान ने हमें इस कार्य के लिए चैतन्य रूप में व्यवस्थित करने के लिए लगाया है। यहां कि हर बस्तु को, हर वृक्ष को संग्रहित करने की आवश्यकता है, हमें सत्य निष्ठा के साथ ब्रज के तीर्थत्व की बापसी का आन्दोलन शुरू करना होगा। इस अवसर पर ब्रज के मर्धन्य विद्वान श्रीवत्स गोस्वामी जी ने उपस्थित जन समूह को सम्बोधित करते हुए कहा कि श्रीकृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ जी ने महाभारत के बाद समूचे ब्रज को ही श्रीकृष्ण का संग्रहालय बना दिया था। जीवन्त संग्रहालय चौरासी कोस में धाम रूपी संग्रहालय बज्रनाभ जी ने ही बनाया, उसके बाद में ब्रजसेवी फेडरिक सामन ग्राउस ने मथुरा में संग्रहालय बनाया। उन्होंने कहा कि ब्रज एक सतत श्रृष्टि है तभी संवत् 2081 और सन् 2024 में भी ब्रज जीवन्त है। लोक के आधार पर ही शास्त्र की रचना हुई है। श्रीकृष्ण और उनसे जुड़ी कला साधना, आराधना में जितने शिल्प आते हैं। वह सब भी लोक की ही देन हैं। तभी तो गाया जाता है कि ‘‘अनौखों री जायो ललना, मैं वेदन में सुन आई, मैं खेतन में सुन आई’’ श्रीकृष्ण आज भी लोक और शास्त्र में जीवित हैं। ब्र
लोक कला एवं शिल्प संग्रहालय का संकल्प डॉ0 उमेश चन्द शर्मा ने लिया है जो की एक सराहनीय कार्य है। ब्रज संस्कृति यदि जीवन है तो संग्रहालय भी जीवन्त है। संग्रहालय मानव जीवन से जुड़ी गतिविधियों का दर्पण होना चाहिए। इस अवसर पर सभी का आभार व्यक्त करते हुए डॉ0 उमेश चन्द शर्मा ने कहा कि इस संग्रहालय की आधारषिला 07 अक्टूबर 2000 में रखी गयी थी जिसमें ब्रज के महान संत महन्त की उपस्थिति थी, अनेक लोगों का योगदान इसमें रहा है, यहां प्रदर्शित कला और शिल्प को अभी पूरी तरह से नहीं रखा जा सका है। अभी और भी कला रत्न प्रदर्शित किये जाने बाकी हैं हम जल्द ही आम जन मानस के लिए उन्हें भी प्रदर्शित करने का प्रयास करेंगे।
इस अवसर पर आचार्य पद्म नाभ गोस्वामी, विष्णु दास गोयल शोरा वाला, दीपक गोयल, आर. पी. यादव, सोहन लाल, दिनेष खन्ना, कपिल उपाध्याय, मुकेष शर्मा, उदयन शर्मा, राधावल्लभ मंदिर सेवायत आनंदलाल गोस्वामी, सुरेश चंद्र शर्मा, सुमनकांत पालीवाल, सुकृत गोस्वामी, सुनील शर्मा (पत्रकार), गोपाल शरण शर्मा, डॉ0 विनोद बनर्जी, मुकेश गोतम, डॉ0 शिवांगी गोतम, दीपक गोस्वामी, प्रियव्रत शर्मा, वीरेन्द्र सिंह, मुकेश गौतम, विनीत शर्मा, सतीश बघेल, सुप्रिया गोस्वामी, हेमू, रमाशंकर शर्मा, महेश प्रसाद, राजेन्ड एडवोकेट, सुरेन्द्र कौशिक, वीरपाल सिंह, हेमलता, सुमनलता, शान्तनु अमित, नन्द किशोर, सुनील सिंह, बाबा जयकृष्णदास, सुभाष, हुकुम चन्द तिवारी एडवोकेट, कवि अशोक अज्ञ, सत्य प्रकाश, डॉ0 नीतू गोस्वामी, विज्येता चतुर्वेदी, बबूलू, मोहित गुप्ता, ब्रजेन्द्र सिंह, चन्द्र प्रकाश सिंह सिकरवार, प्रकाश, दीपक पं. सुरेश चन्द्र शर्मा, ब्रषभान गोस्वामी, पालिवाल, डॉ. रिपुसूदन मिस्त्री, रवि भाटिया, ओम प्रकाश डागुर, सत्येन्द्र नकुल, रंजीत, रामेन्द्र, श्रेया शर्मा, उभा शर्मा,, सीमा मोरवाल, रजत शुरला, मधु तोमर, श्रुति शर्मा, आदित्य राज, श्रीयश, गौरी शंकर शर्मा, प्रांशु, कमल, सतीश सिंह, नारायन सिंह, प्रेम पाल, ब्रजेन्द्र सिंह, राधावललम शर्मा, अमित, मीना, उमाशंकर श्रीवास्तव, अशोक अग्रवाल, कृष्ण बंसल, रेनु दत्ता, साधना गुप्ता, डॉ. अनुजा चौधरी, तुसार जैन, अनन्त स्वरूप बाजपेयी, पवन शर्मा, मयूर कौशिक, विजय विद्यार्थी आदि लब्ध प्रतिष्ठित नागरिक उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन डॉ0 अंजू सूद ने किया।

मंगलवार, 26 दिसंबर 2023

अगर व्यवस्थाऐं न सभल पायें, तो आरोप प्रत्यारोप लगा दो

सौ बात की एक बात अगर व्यवस्थाऐं न सभल पायें, तो आरोप प्रत्यारोप लगा दो ‘‘राधे राधे रटो बुलायेंगे बिहारी’’ तो चले आये बिहारी जी के दर पे वृन्दावन, मथुरा। सड़क पर यातायात व्यवस्थायें न सभल पा रही हों तो चौराहों को बंद कर दो, किलो मीटर दूर तक बाहनों को मोड दो या रोक दो, मंदिरों की तरफ भींड़ जा रही हो तो उसे बैरिकेटिक करके रोक दो, तो न आयेगी भींड़, न लगेगा जाम। वृन्दावन सौ सैया हास्पीटल के पास पागल बाबा मंदिर के बाद से ट्रेफिक को मोड़ दिया जाता है, वृन्दावन की ओर से आने वाले बाहनों को टीएफसी से भी आगे भेज दिया जाता है, मथुरा में स्टेट बैंक चौराहे के पास से लोगों को एक किलो मीटर आगे धकेल दिया जाता है, कभी-कभी रूपम सिनेमा के सामने से महाविद्या कॉलोनी की तरफ ही नहीं जाने दिया जाता है, कोई पूछे तो उल्टा सीधा जबाव मिलता है, बस कह दिया जाता है ‘‘आगे जाओ’’। प्रष्न उठता है कि अगर इस प्रकार से बाहनों को डायवर्ट किया जाता है तो यह परमानेन्ट ही कर दिया जाये। फिर यदि ट्रेफिक को आगे एक किलो मीटर धकेल दिया जाता है, तो फिर चौराहों पर इतने ट्रेफिक पुलिस कर्मियों की वहां आवष्यकता ही क्या है।
सोषल मीडिया पर बॉके बिहारी मंदिर वृन्दावन में लगातार आ रही भींड़ से स्थानीय लोग खासे परेषान हैं, हों भी क्यों न, क्यों कि घरों से निकल भी नहीं पा रहे हैं। जिन्हें भींड़ के आने से कुछ फायदा होता है, वह परेषान नहीं हैं, परेषान तो वह ज्यादा हैं जिनको इस भींड़ के आने से किसी प्रकार का फायदा नहीं है, वह जरूर परेषान हैं, वह सोषल मीडिया पर तरह-तरह के सुझाव और आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं। कोई लिख रहा है कि यहां आ जाते हैं और यहीं गन्दगी करते हैं, यहीं दुकानों के पट्टे पर सो जाते हैं, यमुना में नंगे होकर नहाते हैं, चाहें जहां जो मर्जी आती है करते हैं। कोई लिख रहा है कि ऑनलाइन रजिस्ट्रेषन करा कर दर्षन कराने चाहिए, कोई लिख रहा है कि वृन्दावन में ई रिक्षा अधिक हो गये है, इससे समस्या है। तरह-तरह के सुझाव और तरह-तरह की षिकायत शासन, प्रषासन से की जा रही है। अगर शहर में गन्दगी हो तो नगर निगम है, वह व्यवस्थाऐं देखे और यदि भींड़ ज्यादा आवे तो प्रषासन को देखना है, व्यवस्थायें वह भी स्थानीय लोगों से सुझाव लेकर की जायें। मंदिर में बैरीकेटिंग लगाई गई, नहीं लगने दी गयी, उससे परेषानी होने लगी। गलियों में बैरीकेटिंग लगाई गयी, वह व्यवस्था भी रास नहीं आयी। कोरीडोर का विरोध होने लगा। इतनी भयंकर भींड़ की व्यवस्था के लिए कोई न कोई उपाय जरूर किया जाना चाहिए, दिन पर दिन भींड़ बढ़ रही है। और यह भींड़ सिर्फ वृन्दावन बॉके बिहारी जी में ही नहीं है पूरे जनपद में है बरसाना, नन्दगाँव, गोवर्धन, मथुरा जंक्षन स्टेषन से लेकर मथुरा श्रीकृष्ण जन्मस्थान जाने वाले सभी मार्ग सुबह और सांम को लोगों इतनी भींड़ का सामना करना पड़ता है, कि स्थानीय लोगों का निकलना भी दूभर हो जाता है। सावन का महिना हो अधिक मास हो, वर्ष का अन्तिम सप्ताह हो या नये साल की शुरूआत हो, सभी को पुण्य कमाना है, सभी भगवान से नैना मिला कर अपना आगे का जन्म सुधारना चाहते हैं।
वृन्दावन के कुछ लोगों के कहने भर से लोगों का आना तो रूकने वाला है नहीं, वृन्दावन धाम है, पुण्य भूमि है, राधारानी का नित्य लीला स्थान है। भगवान श्री कृष्ण की रास स्थली है, जिसने भी सुना, सोषल मीडिया पर सुना, यूट्यूब पर सुना ‘‘राधे राधे रटो चले आयेंगे बिहारी’’, लोगों ने समझ लिया ‘‘राधे राधे रटो बुलायेंगे बिहारी’’ तो चले आये बिहारी जी के दर पे अब तो तू हमें सम्भाल हम तो आ गये तेरे दर पे। भीड़ का दवाब तो प्रतिवर्ष पिछले वर्ष के मुकाबले में बढ़ ही रहा है व्यवस्थाएं तो जिला प्रषासन को करनी ही चाहिए। समय रहते व्यवस्थायें न की गयीं तो यह समस्या बिकाराल रूप ले सकती है। समाजसेवी संस्थाओं को भी इस समस्या के लिए आगे आना होगा और स्थानीय लोगों को भी जिला प्रषासन के सहयोग के लिए ठोस सुझाव देने चाहिए।

विदेशों में ब्रजभाषा को गायन से पहचान दिलाने वाली माधुरी शर्मा

लोक गायन के माध्यम से देश विदेश में प्रस्तुति देने वाली सुप्रसिद्ध ब्रज लोक गायक कलाकार माधुरी शर्मा से एक मुलाकात विदेषों में भी ब्रजभाषा के अपने कार्यक्रम प्रस्तुत कर अन्तर्राष्ट्रीय पहचान पा चुकी लोक कलाकार माधुरी शर्मा से एक साक्षात्कार में उन्होंने बताया कि मेरी शुरूआत तो आकाशवाणी मथुरा के मंच से हुई है। आकाशवाणी मंच मर्यादा और गरिमामयी औैर बहुत ही शालीन मंच है और सबसे बड़ी बात यह है कि वहाँ बिल्कुल देशी चीज़ें मिलेंगी। वहां पर कोई मिलावट नहीं है। यानी जो भी लोक गीत गाए जायें, जो भाषा बोली जाये, वो है ब्रजभाषा, हमारे ब्रज के लोगों के लिए, हमने वहाँ आकाशवाणी मंच से देश के कोने-कोने में कोई जगह ऐसी नहीं छोड़ी जहाँ पर ब्रजभाषा को नहीं पहुँचाया हो, विदेशों में भी ब्रजभाषा में ही गाया। लोग कहते थे कि इस भाषा को कौन समझेगा। मैं ऐसी-ऐसी जगह गयी हूँ जहां इस भाषा को लोगों ने पहली बार सुना था। मैं आकाषवाणी की एक कलाकार हूँ ठाकुरजी की कृपा से आकाशवाणी का सबसे बड़ा ग्रेड मुझे मिला है टॉप ग्रेड जो कि पूरे उत्तर प्रदेश में, मैं एक अकेली कलाकार हूँ। टॉप प्लस ग्रेड जो की एक लोक कलाकार के लिए एक सपना जैसा होता है। वो कभी पूरा नहीं हो होता है और यदि पूरा हो जाए तो समझो कि ठाकुरजी की बड़ी कृपा हो गयी है। शास्त्रीय और सुगम संगीत में तो यह मिल जाता है लेकिन लोकगायन के लिए मिलना एक असंभव सी बात है, क्योंकि लोककला को लोग शौकिया तरीके से ज्यादा गाते हैं। संगीत को सीख कर बहुत कम ही लोग गाते हैं। जो संगीत को सीख कर गाते हैं वह बहुत ऊपर तक जाते हैं।
उन्होंने बताया कि मैंने तो शास्त्रीय संगीत को सीखा है। विषारद किया है एम ए किया है। हमारे घर में हमारे बड़े भाईसाहब डॉ0 सत्यभान शर्मा जो कि हबेली संगीत के जाने माने गायक कलाकार हैं, वह आगरा में दयालबाग यूनिवर्सिटी में डीन के पद पर रह चूके हैं। माधुरी शर्मा ने बताया कि मुझे शिमला में बुलाया गया था। शिमला आकाशवाणी की ओर से कुल्लू फेस्टिवल, दशहरा फेस्टिवल में तो वहाँ के एक सज्जन बोले, मैडम आप कहा से आईं हैं मेने कहा मथुरा से आयी हूँ, उन्होंने पहली बार मथुरा का नाम सुना था, मैंने जब कहा कि मैं तो उनकी मथुरा से आई हूँ, सुन कर उनके चेहरे का भाव ही बदल गया और कहने लगे अरे मैडम आपको कौन सुनेगा? मैंने कहा कि भैया यह तो समय ही बताएगा। वहाँ पर 20 और 30 के ग्रुप में लोग गाने आते हैं, वहां मैं एक अकेली कलाकार वहां कोई अकेले गाने के लिए नहीं आता हैं, उस समय मैं लहंगा नहीं पहनती थी। जब शुरूआत में 1986 की बात रही होगी, मैं चौड़े बॉर्डर की साड़ी पहन के गाने जाती थी। उस समय मेरे लोकगीत इतनी तनमयता से वहां के लोगों ने सुना। वहाँ के डाइरेक्टर कार्यक्रम के बाद तुरंत उठ के आए और हमारा सम्मान किया यह यादगार और स्मरणीय पल था, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है। उन्होंने कहा कि आपने तो रिकॉर्ड तोड़ दिया। यहाँ यह दशहरा फेस्टिवल है, कुल्लू में इतनी बड़े मंच पर बड़े-बड़े ग्रुप आते हैं। यहाँ अकेला आदमी तो कोई आया ही नहीं और अगर आया भी तो यहां टमाटर फेंके जाते हैं और यहां से भगा देते हैं। आपको इतने प्रेम से लोगों ने सुना, मैंने कहा कि यह तो हमारे ठाकुरजी की हमारे उपर बड़ी कृपा है। मैं ब्रजभाषा में गाऊ ब्रजभाषा में बोलूं और तब भी सबकी समझ में आवे है।
आपके विदेशों के अपने अनुभव बताइए कैसा रहा? विदेशों का अनुभव भी बड़ा अच्छा अनुभव है। वहाँ पहले तो हम गए 1991 में, मैं अगर यह कहूं तो कोई गलत बात नहीं होगी कि मैं ब्रज की पहली लोक कलाकार हूँ, जिसने विदेश की धरती पर जाकर के अपना लोक गायन प्रस्तुत किया हो। वहाँ के लोगों ने कैसी प्रतिक्रिया दी? वहाँ के लोगों की प्रतिक्रिया से पहले मैं बता दूं कि हमने ना तो अपनी वेशभूषा छोड़ी, मंच के अलावा भी हमने हर जगह पर साड़ी ही पहनी ये नहीं है कि हम और कोई ड्रेस में वहां घूमे हों। पूरे एशिया, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप का वर्ड सॉन्ग फेस्टिवल था जो कि मलेशिया में हुआ था हमने वहां पर अपनी प्रस्तुति दी, मलेशिया में। सही बात कहूं कि वहाँ हमें एक बात सुनाई पड़ी क्योंकि यह आयोजन मलेशिया के कोलालम्पुर राजधानी में वर्ड सॉन्ग फेस्टिवल में हुआ था जिसमें हमने भाग लिया था भारत की ओर से आकाशवाणी महानिदेशालय ने हमको भेजा था? क्योंकि जब हम ए ग्रेड हुए थे। तो तुरंत ही हमको ये बाहर का कार्यक्रम मिला। जब हम वहाँ पहुंचे तो सब ने हमको देखा सबने तो ये कहा की भाई एक कलाकार हैं, जिनसे बिना पूछे ही हम कह सकते हैं यह भारत की आर्टिस्ट हैं क्योंकि उनका बोलना, चालना, खाना-पीना और गाना और पहनना औढ़ना, सब कुछ भारतीय है, इनसे पूछने की जरूरत ही नहीं है। वो कहां की कलाकार हैं तो यह हमारे लिए बड़े गौरव की बात रही। जो हमारे लिए यह बात वहां कही गयी थी।
हम जब वहाँ से लौट आये तो हमारे बच्चों ने हमसे कहा कि ‘‘अरे मम्मी आप तो जैसी गयीं थीं, वैसी आ गयीं’’। तो मैंने कहा तो क्या करती, ‘‘अरे नहीं, बाल वॉल कटवा के आतीं कछु न कुछ बदल के आतीं’’ तो हमने उनसे क्या कहा ‘‘हम तो अपनों रंग चढ़ाए के आये हैं, काई को रंग हम पे न चढ़ सके, हम पे किसी का रंग क्यों न चढ़ सकता क्यों कि हम तो श्याम सुन्दर के रंग में रंगे भये हैं। हम तो उन पे रंग चढाये वे गए और चढ़ाएं के आये गये, उनको रंग हम पे नाय चढ़ सके। हम ब्रज में रहे हैं जहाँ हमारे कृष्ण कन्हैया रहे हैं और कन्हैया को रंग श्याम वर्ण है, श्याम को मतलब है कारो। तो भैया सुनील जी जे बताओ या रंग पे कछु रंग चढ़ सके का, चढ़ाओगे तो का बा पे कोई रंग चढ़ जावेगो का?

मंगलवार, 12 सितंबर 2023

निर्मला सुन्दरी से श्री श्रीमाँ आनन्दमयी

ब्रज में न जाने कितने ही लोग प्रतिदिन ब्रज और वृन्दावन में दर्शन करने आते कुछ तो यहीं बसने की आश लिए यहां आते हैं। भौतिक सुख सुविधाओं को त्याग कर कितने ही लोग यहां रह कर साधना में रत रहते हैं, असंख्य सन्तों ने इस दिव्य भूमि को अपनी साधना स्थली बना लिया और यहां पर रह कर आश्रम, मठ, मंदिरों का निमार्ण कर लोक कल्याण का काम किया है। इनमें एक नाम आनन्दमयी माँ का भी है जिन्होंने वृन्दावन में विशाल मंदिर का निमार्ण कराया और असंख्य लोगों को धार्मिक आस्था और भक्ति के मार्ग से जोड़ने का कार्य किया। आनन्दमयी माँ का जन्म 30 अप्रैल सन् 1886 ई. वृहस्पतिवार के दिन रात्रि 3 बजे त्रिपुरा जिलान्तर्गत अभिवाजित बंगाल प्रान्त के ’सेउड़ा’ नामक ग्राम में हुआ था। पिता श्री विपिनबिहारी भट्टाचार्य“ तथा माँ का नाम “मोक्षदा सुन्दरी“ था। पूर्व जन्म की इन्हें स्मृति बनी रही। बचपन में माँ को खिला पिला देने पर भी वह हमेशा आकाश की ओर ही निहारती रहती थीं बाल्यावस्था में स्वाभाविक उदासीन स्वरूप देख लोग इन्हें ’ढेला’ या ’विदिशा’ भी कहने लगे थे। जिसका मतलब आजल या पागल कहते थे। इन्हें अपने देह की कोई सुधबुध नहीं रहती थी।
माँ ने बचपन में इनका नाम निर्मला सुन्दरी रखा था। आनन्दमयी माँ नाम तो बाद में ढाका के प्रसिद्ध ज्योतिष चन्द्र राय के साथ एक बार ’सिद्धेश्वरी ससान’ में जाने पर वहाँ के सन्यासी स्वामी मौनानन्द महाराज ने रखा था। शैशवकाल में अपने पितामह की सान्निध्य में गाँव की एक पाठशाला में अल्प शिक्षा ग्रहण की थी क्योंकि उस समय शिक्षा, देशकाल की सीमा तक ही सीमित थी। फिर भी तीव्र प्रतिभा एवं विलक्षण स्मरण शक्ति की धनी होने के चलते आप शिक्षा के प्रति अब जैसी इतनी जागरूकता न थी। उस समय की प्रथानुसार 13 वर्ष की आयु में सन् 1909 में ढाका विक्रमपुर आटपाड़ा गाँव के ’रमणी मोहन चक्रवर्ती’ के साथ आपका विवाह हो गया था। इनकी लघु वैवाहिक जीवन यात्रा में भी अन्तर्मुखी साधना प्रवाहित रही। माँ के कारण ही पतिदेव ’रमणीमोहन’ का नाम ’भोलानाथ’ के नाम से विख्यात हुए। विवाह के कुछ समय बाद ही पतिदेव की पुलिस नौकरी की छूट गई। परिस्थितिवश ऐसे में 4 वर्ष तक जेठ के साथ साधन निरत रहते हुए रहना पड़ा। भोजन बनाते ही कभी समाधी लग जाती। ऐसी दशा देखकर आपसे जेठ बड़े प्रसन्न थे। चूल्हे पर चढ़ा सब कुछ जल जाता तो जेठानी प्रायः नाराज रहती थीं। पर कुछ बस न चलता। कुछ वर्षो बाद पतिदेव की नौकरी नवाब की रियासत अष्टग्राम में पुनः सर्वे विभाग में लग गई। तब वहाँ जयशंकर सेन के बाड़े में आकर आप रहने लगीं थीं। सेन की पत्नी का आपके प्रति इतनी श्रद्धा थी कि आपका नाम खुशी की माँ कह कर पुकारती थीं। आप भागवत आदि सुनते-सुनते भावावेश में आ जाती थी। इसी बीच 18 वर्ष की आयु में कई बार नौकरी से स्थानान्तरण भी हुआ। आपके अन्दर तीव्र प्रकट ज्योति होते देखकर कितने ही तान्त्रिकों एवं ओझाओं को आपके पतिदेव ने दिखाया किन्तु सभी नतमस्तक होकर वापस चले जाते थे। तब कहीं पतिदेव को भी ज्ञान हुआ कि यह पूर्व अर्जित भावदशा ईश्वरीय प्रदत्त महत स्थिती है। सन् 1922 ई. श्रावण झूलन पूर्णिमा को स्वतः दीक्षा सम्पन्न हुई। एवं योगिक, तांत्रिक क्रियाओं के साथ संस्कार आदिक मंत्र जप करना चलता रहा। आपने कोई सम्प्रदाय नहीं चलाया। हिन्दू सभी देवी देवताओं में आस्था और उनका समान करती थी। इसी बीच सन् 1924 ई. में पुनः नौकरी छूट गई। अबकी बार नवाब के द्वारा ढाका मैनेजरी मिली। आप यहाँ शाहबाग में अपने देवर ’माखन’ एवं भतीजे ’आशु’ के साथ रहती थीं। यहीं पर आपकी अनन्य उपासिका गुरूप्रिया दीदी से भी प्रथम भेंट हुई। आगे चलकर माँ के चरणों में आजीवन बनी रहीं। इनके द्वारा मूलतः बंगाल में छपी ’श्री श्री माँ आनन्दमयी’ नामक संस्मरणात्मक रचनाएँ सन् 1964 ई. तक की अनुभूतियाँ 20 खण्डों में छपी है। इन रचनाओं की हिन्दी एवं अन्य भाषाओं में भी अनुवाद हो चुका है। माँ की बाहरी यात्रा सन् 1927 ई. से हरिद्वार तीर्थो के कुम्भ मेले से प्रारम्भ हुई। लौटते समय मथुरा वृन्दावन आई। फिर तो काशी आदि विभिन्न तीर्थों की यात्राएँ होती रहीं। बंगीय परिवेश के कारण आप शक्ति की विशेष उपासिका थीं। किंतु साथ में गौड़ीय सम्प्रदाय चैतन्य महाप्रभु के प्रति निष्ठा थी। माँ के सम्पर्क में आने में आगे चलकर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी, आचार्य जे. पी. कृपलानी, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, पं. गोविन्दबल्लभ पंत, युगल किशोर विड़ला, यमुनालाल बजाज, श्रीमती अपर्णा रे, श्रीमती कमला नेहरू, श्री दिलीप कुमार राय, श्री महादेव देसाई, श्रीगोपाल स्वरूप पाठक, श्रीमती सुचेता कृपलानी, जवाहरलाल नेहरू एवं श्रीमती इन्द्रा गाँधी आदि थे। वृन्दावन धाम आश्रम में एक बार मैंने भी साक्षात् दर्शन किये थे। उस समय उनका स्वास्थ्य खराब चल रहा था मैंने दर्शन किये और फिर 27 अगस्त सन् 1982 ई. 96 वर्ष की आयु में माँ ने देहरादून स्थित अपने किशनपुरा आश्रम में इस धाम को छोड़ कर हमेशा के लिए सभी को छोड़ कर चलीं गयीं। चमत्कार की वात तो यह थी कि इतनी वृद्धावस्था होने पर भी आपके एक भी बाल सफेद नहीं बल्कि स्याह काले ही बने रहे। आपके आश्रम वृन्दावन में छलिया राधाकृष्ण की सेवा पूजा होती है
मन्दिर का निर्माण सन् 1950 ई. के लगभग सुश्री माँ आनन्दमयी जी के द्वारा किया गया। मंदिर में ठाकुर छलिया राधाकृष्ण विराजते हैं। बगल में गौर निताई भी है। मंदिर एक विशालकाय अहाते के में बना हुआ है। ठाकुर के छलिया नाम पड़ने का कारण बड़ा विचित्र है एकबार ग्वालियर के महाराज जियाजी राव सिंधिया ने अपने लिए अष्टधातु निर्मित एक भव्य मूर्ति बनवायी। स्थापना उत्सव में माँ को भी बुलवाया किन्तु उत्सव के पहले ही अचानक महाराज परलोकवासी हो गये। घटना से पत्नी जियाजी राव सिंधिया बड़ी मर्माहत हो गयीं। माँ के समझाने बुझाने पर अचानक यह आया कि छलिया यह वृन्दावन धाम में ही वसना चाहते है। माँ से वार्तालाप हुयी। माँ ने स्वीकार कर लिया। और वृन्दावन स्थित रामकृष्ण मिशन हास्पीटल के सामने आनन्दमयी माँ का आश्रम है। जहां राधारानी विग्रह, छलिया ठाकुर के साथ गौर निताई विग्रह भी स्थापित किये गए। तभी से ठाकुर का नाम छलिया पड़ गया। एकबार काशी पक्के मोहल्ले में कोई बंगीय भक्त जमींदार का गोपाल मंदिर था। गरीबी के कारण आने वाला खर्च बन्द हो गया। भक्तराज तीन बार गोपालजी को गंगाजी में पधराने का प्रयास किया। दो बार व्यवधान पड़ने से गोपाल रुक गये। तीसरी बार ठाकुर ने स्वप्न दिया मुझे आनन्दमयी माँ को भेंट कर दो। माँ के आश्रम का पता लगाते हुए भक्त पहुँच गया। और घटना सुनाते हुए माँ को भेंट कर दिया। माँ ने वहीं काशीपुरी में गंगा के तट पर आनन्द ज्योति नामक मंदिर का निर्माण कराकर वहीं लड्डू गोपाल का विग्रह विराजित कर दिया। माँ के जीवन की ऐसी ही अनेक घटनाऐं है। राधाकृष्ण एवं गौर निताई विग्रह पूना आश्रम, उत्तरकाशी एवं देहरादून आदि सभी आश्रमों में विराजमान है। दीपावली कृष्णाष्टमी, एवं राधाष्टमी पर्व पर वृन्दावन में धूमधाम से उत्सव मनाया जाता है।

रविवार, 10 सितंबर 2023

मथुरा वृन्दावन रेल लाइन का परिवर्तन समस्या या समाधान

मथुरा और वृन्दावन के बीच चलने वाली रेलवे की नयी व्यवस्था के वारे में कुछ वात कर लें। जानकारी के अनुसार इस रेलवे लाइन का निर्माण वृन्दावन स्थित राधा माधव जयपुर मंदिर के निर्माण के लिए उस समय पत्थरों की ढुलाई के लिए किया गया था। करीब डेढ़ सौ वर्ष पहले मथुरा-वृंदावन के बीच यह मीटर गेज रेल लाइन डाली गयी थी, कुछ सालों के वाद यह इतिहास में यादगार बन कर रह गई। जयपुर घराने के राजा सवाई माधव सिंह (द्वितीय) द्वारा वृंदावन में जयपुर मंदिर (राधा माधव) का निर्माण कराया गया था। इसके लिए 1905 से 1908 के बीच जयपुर और धौलपुर से लाल पत्थरों की ढुलाई के लिए राजा सवाई माधव सिंह द्वारा तत्कालीन ब्रिटिश शासकों से विशेष अनुमति लेकर यह मीटर गेज लाइन बिछाई गई थी। मंदिर परिसर में ही अस्थायी रूप से स्टेशन भी बनाया गया था। राधा माधव मंदिर के निर्माण में रेल से पत्थरों की ढुलाई के कारण मंदिर का निर्माण 23 मई 1917 में पूरा हुआ और इस अवसर पर ठाकुरजी का पाटोत्सव मनाया गया। इस मंदिर के निर्माण में 40 वर्ष का समय लगा था।
इस रेल लाइन को अब डेढ़ सौ वर्ष के वाद गेज परिवर्तन करने का काम उत्तर मध्य रेलवे ने शुरू किया। यह रेलवे लाइन मथुरा वृंदावन के बीच 12 किलोमीटर के मीटर गेज रेल ट्रैक के रूप में थी, जिस पर कभी वृन्दावन से बैशाली एक्सप्रेस नोर्थ बंगाल के न्यू जलपाईगुड़ी स्टेषन तक सवारी गाड़ी के रूप में अप एण्ड डाउन किया करती थी तथा मालगाड़ी भी वृन्दावन के कुछ व्यापारियों के लिए नोर्थ बंगाल से कुछ माल लेकर आती व जाती थी। दिलचस्प बात यह है कि वृन्दावन में नगरवासी कुंज, छोटे पागल बाबा मंदिर में दुर्गा पूजा के लिए गौर कृष्ण दास उर्फ सुरेस्वरानन्द जी ने सन् 1963 में प्रथम बार एक दुर्गा की प्रतिमा को जलपाईगुड़ी से बनवा कर यहां पूजा के लिए मंगाई थी। मंदिर के सेवायत नवद्वीप दास ने बताया कि मूर्ति प्रतिवर्ष वृन्दावन इसी ट्रेन के लगेज में लाई जाती रही, सन् 2000 के बाद मूर्ति अब यहां नहीं आती है, क्यों कि अब सवारी गाड़ी व माल गाड़ी का चलन इस रूट पर बन्द कर दिया गया। इसके कुछ समय के बाद इस रेल रूट पर बैटरी से चलने वाली दो डिब्बों की रेल बस को शुरू किया गया जिसे तत्कालीन रेलमंत्री रामविलास पासवान ने शुरू किया था। कुछ समय तक ठीक से चलने के बाद आयदिन इसमें खराबी आने लगी। कभी इसे चालू किया जाता फिर खराब होने पर बन्द कर दिया जाता था। रेल बस दिन में केवल तीन चक्कर लगाती थी, तथा इसमें एक समय में 72 से अधिक यात्रियों को नहीं ले जाया जा सकता था। इसलिए दोनों शहरों के बीच पूरे यातायात का भार मथुरा-वृंदावन मार्ग पर पड़ने लगा। इस स्थिति को देखते हुए यातायात को आसान बनाने की दृष्टि से एक अन्य विकल्प को विकसित करना अत्यावश्यक हो गया। अब मथुरा-वृंदावन रेल लाइन को डबल रोड के रूप में बदला जाएगा, साथ ही एलिवेटेड को ट्विन मेट्रो ट्रैक के रूप में विकसित किये जाने की योजना है। मथुरा-वृंदावन मेट्रो जो भाजपा सांसद (मथुरा) हेमा मालिनी का लंबे समय से सपना रहा है, जल्द ही यह वास्तविकता बदलने जा रही है। इसके लिए रेल मंत्रालय और संबंधित अधिकारियों ने कम उपयोग में आ रही मथुरा-वृंदावन रेल लाइन को डबल रोड में बदलने और एलिवेटेड पाथवे को मेट्रो ट्रैक के रूप में विकसित करने के लिए सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है।
श्रीमती हेमा मालिनी और ब्रज तीर्थ विकास परिषद् के उपाध्यक्ष शैलजा कांत मिश्रा ने रेल मंत्री श्री पीयूष गोयल को मथुरा वृन्दावन में अनियंत्रित यातायात के समाधान के रूप में मेट्रो चलाने का प्रस्ताव दिया था, जो मथुरा और वृंदावन के बीच यात्रा को असुविधाजनक और कम समय लेने वाला बनाना है। यूपी के तत्कालीन ऊर्जा मंत्री वर्तमान विधायक श्री श्रीकांत शर्मा ने उनसे ‘ब्रज हेरिटेज मेट्रो ट्रेन कॉरिडोर’ पर भी चर्चा की थी। मंत्रालय से मंजूरी अनिवार्य थी क्योंकि संपत्ति रेलवे की है। रेल भूमि विकास प्राधिकरण (दिल्ली) के अधिकारी अंजनी कुमार और आगरा के डीआरएम ने स्थिति और परियोजना के दायरे का अध्ययन करने के लिए जिला प्रशासन के प्रतिनिधियों के साथ एक बैठक की जिसमें यह निर्णय लिया गया कि रेल लाइन को डबल रोड में बदल दिया जाएगा, साथ ही एलिवेटेड का उपयोग मेट्रो के लिए किया जाएगा। मेट्रो के दो ट्रैक मथुरा और वृन्दावन के बीच आने-जाने से सहायता मिलेगी। मथुरा के लोगों के लिए मेट्रो की सवारी अपने आप में एक आकर्षण के रूप में देखा जा रहा है जो यात्रियों को मथुरा-वृंदावन के प्रतिष्ठित मंदिरों जैसे श्री कृष्ण जन्मस्थान, बिड़ला मंदिर और पागल बाबा मंदिर को उपर से देखने का अवसर प्रदान करेगा। इसके अलावा, मेट्रो लाइन के दोनों ओर जहां स्टेशनों की योजना है, वहां शॉपिंग मॉल और पार्किंग सुविधाएं भी विकसित की जाएंगी। मथुरा वृंदावन के बीच रेल ट्रैक 12 किमी. का है मथुरा वृंदावन के बीच करीब 12 किलोमीटर का रेल ट्रैक है। इस मीटर गेज को परिवर्तित करने के लिए रेलवे ने प्रोजेक्ट तैयार कर काम भी शुरू कर दिया था। रेलवे द्वारा तैयार प्रोजेक्ट के अनुसार इस ट्रैक के ब्रॉड गेज में कन्वर्ट करने के दौरान 2 आरओबी, 17 आरयूबी के अलावा 23 छोटे ब्रिज भी बनाए जाने की योजना थी। इस ट्रैक पर 6.6 किलोमीटर का एलिवेटेड इंबैंकमेंट ट्रैक रहेगा इसके अलावा 4.5 किलोमीटर लेबल ट्रैक बनाया जायेगा यानी जमीन के लेबल पर बनाया जाता फिलहाल इसका काम बन्द करा दिया गया है। 2 स्टेशनों के साथ 4 हॉल्ट स्टेशन भी बनाए जाने थे मथुरा वृंदावन के बीच गेज ट्रैक परिवर्तन के बाद इस रूट पर 4 हॉल्ट स्टेशन के साथ 2 रेलवे स्टेशन बनाए जाने की योजना थी। मथुरा जंक्शन से शुरू होने वाले इस रेल ट्रैक पर पहला हॉल्ट स्टेशन शिव ताल पर होता। इसके बाद श्री कृष्ण जन्मस्थान और फिर मसानी पर क्रॉसिंग रेलवे स्टेशन बनाया जाना था। यहां से आगे चामुंडा देवी मंदिर के पास और चैतन्य बिहार वृन्दावन में हॉल्ट स्टेशन बनना था। अंत में वृंदावन स्टेशन टर्मिनल विकसित करने की योजना थी। गेज ट्रैक परिवर्तन का काम जनवरी 2023 सें शुरू हो चुका था गेज कन्वर्ट करने का काम 14 जनवरी 2023 से शुरू किया गया था। 10 चरण में शुरू होने वाले इस गेज परिवर्तन का काम 14 जनवरी 2025 को काम पूरा किया जाना था। इसके लिए अर्थ वर्क और ब्लैंकेटिंग का काम शुरू किया गया। यह काम 15 जुलाई 2024 तक पूरा होना था। तथा मार्च 2023 से सितम्बर 2024 तक पुल बनाने का काम भी पूरा करना था। स्टेशन की इमारत और प्लेटफार्म बनाने का काम भी इसी दौरान पूरा किया जाना था। ट्रैक लिंक करने का काम फरवरी 2024 से नवम्बर 2024 तक किया जाना था। इस ट्रैक पर विद्युतीकरण भी किया जाना था। यह काम अप्रैल 2023 से शुरू होकर दिसंबर 2024 तक पूरा करना था। इस दौरान सिगनल और टेलीग्राफ सिस्टम पर भी काम किया जाना था। इसके बाद टेस्टिंग, ट्रायल आदि का काम जनवरी 2025 तक पूरा कर लिये जाने की योजना थी, यानी 2 साल के भीतर गेज परिवर्तन कर रेलवे इस ट्रैक को पूरी तरह से चालू कर देता। श्रद्धालुओं को मिलती सुबिधाएं स्थानीय व्यापारियों को होता फायदा गेज परिवर्तन होने के बाद मथुरा वृंदावन आने वाले श्रद्धालुओं को बड़ी राहत मिलती। अभी श्रद्धालु मथुरा जंक्शन स्टेशन पर उतरते हैं और उसके बाद वह विभिन्न माध्यम से वृंदावन तक आते हैं। वृंदावन स्टेशन से लंबी दूरी की ट्रेन शुरू होने से न केवल श्रद्धालुओं को राहत मिलती बल्कि स्थानीय लोगों और स्थानीय व्यापारियों को भी पुनः सहूलियत मिल सकती थी। मथुरा वृंदावन में करोड़ों श्रद्धालु अपने आराध्य के दर्शन करने आते हैं। इस ट्रैक के परिवर्तन के बाद श्रद्धालुओं को जहां राहत मिलने की सम्भावना थी वहीं शहर में लगने वाले जाम की समस्या से भी निजात मिल सकती थी। रेलवे वंदे भारत की तरह की ट्रेन चलाने की योजना बना रहा था रेलवे मथुरा वृंदावन के बीच कम कोच की वंदे भारत जैसी ट्रेन चलाने की योजना बना रहा था। इसके साथ ही वृंदावन स्टेशन से लंबी दूरी की भी कुछ ट्रेन चला कर श्रद्धालुओं और स्थानीय लोगों को भी सुबिधा मिल सकती थी। हालांकि मथुरा वृंदावन के बीच चलने वाली ट्रेन के नाम और इसकी टाइमिंग क्या होती इस पर अभी कोई निर्णय नहीं लिया गया। मथुरा वृन्दावन के मध्य गेज परिवर्तन कर रेलवे ट्रैक को पूरी तरह से चालू करने में 402 करोड़ 88 लाख के इस गति शक्ति प्रोजेक्ट पर उत्तर मध्य रेलवे ने काम करना शुरू कर दिया था कुछ लोगों को यह विकास कार्य रास नहीं आया और विरोध के चलते फिलहाल इस योजना को ब्रेक लग गया है।
रेलवे को पूरे ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा क्षेत्र को रेल ट्रेक से जोड़ना चाहिए रेलवे को ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा में पड़ने वाले पडाव स्थलों को जोड़कर तीन फेज में मेट्रो की तर्ज पर पिलर्स डाल कर यहां भी मेट्रो चलाने की योजना बनानी चाहिए। प्रथम फेज में मथुरा से वृन्दावन तक मेट्रो ट्रेक डालने पर विचार किया जाना चाहिए। दूसरे चरण में वृन्दावन से राधाकुण्ड़ बरसाना होते हुए गोवर्धन से मथुरा तक मेट्रो ट्रेक डालना चाहिए, तीसरे चरण में मथुरा से गोकुल महावन बलदेव होकर वृन्दावन तक का मेट्रो ट्रेक विकसित किया जाना चाहिए। जिससे रेलवे को अत्यधिक आय का अवसर मिलेगा, क्यों कि मथुरा वृन्दावन में प्रतिवर्ष करोड़ों श्रद्धालु यहां आते हैं तथा ब्रज के सभी प्राचीन धार्मिक व आस्था के केन्द्रों में जहां-जहां श्रीकृष्ण राधारानी की लीला स्थलियों का दर्षन करते हैं। इस योजना से रेलवे को भारी लाभ का अनुमान लगाया जा सकता है तथा मथुरा वृन्दावन तथा ब्रजचौरासी कोस परिक्रमा का विकास भी सम्भव है जिससे रोजगार की अपार सम्भावनाओं की आषा की जा सकती है।

शुक्रवार, 1 सितंबर 2023

सनातन, वैष्णव धर्म को विश्व के कौने-कौने में पहुंचाने का श्रेय श्रील ए. सी. भक्ति वेदान्त स्वामी प्रभुपाद जी को जाता है।

सनातन धर्म और वैष्णव धर्म के प्रचार प्रसार को विश्व के कौने-कौने में पहुंचाने का श्रेय एक मात्र श्रील ए. सी. भक्ति वेदान्त स्वामी प्रभुपाद जी को जाता है। आज 01 सितम्बर 1896 ई0 प्रतिपदा के दिन आपका जन्म पश्चिम बंगाल प्रान्त के “कलकत्ता“ शहर में हुआ था। आपने 81 वर्ष आयु तक सन् 1977 ई. को मिती मार्गशीर्ष कृष्णा चतुर्दशी को वृन्दावन में रमणरेती की रज प्राप्ति की। आपके गुरू श्रील विमलानन्द (भक्ति सिद्धान्त सरस्वती) ने उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में दीक्षा दी थी। तत्पश्चात् 11 वर्ष अखण्ड गौड़ीय ग्रन्थों को पढ़ने के बाद ही दीक्षा ले ली थी। आपका पहले का नाम ’अभय चरन डे’ था। श्री गुरु महाराज ने आपका नाम अभय का ’ए’ तथा ’चरन’ का सी., अँग्रेजी के पहले अक्षर को मिलाकर अपनी तरफ से सन्यास का नाम ’भक्ति वेदान्त’ को जोड़कर “ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी“ बना दिया। श्रील से तात्पर्य जो धन धान्य लक्ष्मी से परिपूर्ण हो। तात्पर्य-श्रीः लास्यति इति श्रीलः।
संगम-प्रयागराज तीर्थ में दीक्षा लेते ही धर्म प्रचार कार्य में जुट गए। गुरु जी ने वैदिक ज्ञान के प्रचार हेतु अंग्रेजी भाषा में करने को कहा क्योंकि अंग्रेजी भाषा में आप कुशल दक्षता प्राप्त थे। अतः गौड़ीय मठों को सहयोग देते हुए सन् 1933 ई. में गीता पर एक टीका लिखी। कितने वर्षों तक आप भारत में ही धर्म प्रचार करते रहे। सन् 1944 ई. में आपने बिना किसी के सहयोग लिए अंग्रेजी में एक ’पाक्षिक पत्रिका’ निकाली जो कभी भी बन्द न होकर बल्कि अब तक तीस भाषाओं में छप रही है। सन् 1959 ई. में आपने ‘वानप्रस्थ’ सन्यास लेकर कितने ही वर्षों तक वृन्दावन ’राधादामोदर’ मन्दिर में रहकर यहां से धर्मग्रन्थों का अनुवाद किया, विषेष कर श्रीमद्भगवत गीता का अनुवाद अंग्रेजी में करके विष्व में जन-जन तक पहुंचाने का पुनीत कार्य किया। सन् 1965 ई. में श्री गुरुदेव द्वारा चलाया हुआ धर्मानुष्ठान अभियान पूरा करने के लिए सितम्बर मास में ‘‘संयुक्तराज्य अमेरिका’ गए। वहाँ पहुँचकर प्रथम् “न्यूयार्क“ नगर से अपना अभियान प्रारम्भ किया। फिर सन् 1966 ई. में ‘‘आंतरराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ“ की स्थापना की। आपके प्रचार, प्रसार, विस्तार विषय में जितना कुछ कहा जाय वह कम है। जीवन का एक-एक दिन अमूल्य घटनाओं से भरा पड़ा है।
आपने अपनी वृद्धावस्था की भी परवाह न करते हुए ग्यारह वर्षों के अन्तराल में विश्व के छहों महाद्वीपों की चौदह बार परिक्रमा की। आप की उर्वरा शक्ति सम्पन्न लेखनी अविरत चलती ही रहती थी। सौ से अधिक ग्रन्थों को पच्चास भाषाओं में छापकर करोड़ से अधिक संख्या में वितरित किया। एक बार “हरे कृष्ण“ आन्दोलन के उपर शुरूआती समय में ’रूस जैसे कम्युनिज्म देश में प्रतिबंध लगा दिया गया था। फिर भी न मानने से ’हरेकृष्ण’ भक्तों को पागलों के साथ जेल में ठूंस दिया गया। जेल में भी जमकर कीर्तन होता रहा। नाम के प्रताप से कितने ही पागल तो ठीक भी हो गए। ऐसा चमत्कार देखकर वहाँ की सरकार को हार मान कर ढाई वर्षों बाद इन्हें छोड़ना पड़ा था। रूसी भाषा में लाखों गीता भागवत छपवा कर वितरित की गई, जो परम्परा अभी भी चली आ रही है। परिणामतः कितने ही रूसी भक्त वर्तमान में पश्चिम बंगाल के मायापुर एवं मथुरा के वृन्दावन धाम की यात्रा पर निरन्तर आते हैं।
गुरू षिष्य परम्परा का निर्वहन करते हुए प्रभु प्रेरित दैवी शक्ति सम्पन्न गुरु, कृपा से धराधाम पर गौड़ीयमठ के माध्यम से प्रचारकों के रूप में आए। केवल विदेशों में “अन्तर्राष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ“ प्रचार केन्द्रों की संख्या आज लगभग 200 से अधिक मंदिरों के साथ शाखाएं हो गई हैं। जहाँ मन्दिरों में ’राधाकृष्ण’ चैतन्य-नित्यानन्द श्रीविग्रह के साथ विशुद्ध वैष्णव पद्धति से सेवा पूजा होती है। भक्त सदाचार का समुचित पालन करते हैं। श्री गौराङ्ग, नित्यानन्द, राधाकृष्ण नाम संकीर्तन के माध्यम से मात्र 11 वर्षों में भारतीय धर्म संस्कृति का प्रचार प्रसार विश्व क्षितिज पर जिस प्रकार उनकी कृपा से छा गया है इस प्रकार की सफलता विश्व के इतिहास में एक मात्र बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार काल में सम्राट ’अशोक’ ही एक बार कर पाया था । ’हरे कृष्ण’ आन्दोलन सफलता पूर्वक समस्त विश्व में छा गया है। नास्तिकों के हृदय रूपी मरुभूमि में भी आस्तिकता की निष्ठा जाग गई है। यह पूरा श्रेय श्रील ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद जी को ही जाता है जिन्होंने सनातन धर्म वैष्णव धर्म का प्रचार प्रसार पूरे विष्व में किया है। श्रीचैतन्य देव ने जो एक बार कहा था उन्हीं के शब्दों में “पृथ्वी पर्यन्त यत आछे देश ग्राम, सर्वत्र प्रचार होइवेक मोर नाम“।। (चै० चरि० 2/4/26)